ब्रह्मसूत्राणि

समन्वयाध्यायः
उपोद्घातः, अध्यायपादपीठम्, अन्यत्रप्रसिद्धनामात्मकशब्दसमन्वयश्च
॥ [ॐ] ॐ अथातो ब्रह्मजिज्ञासा [ॐ]॥ १/१/१॥
जिज्ञासाधिकरणम्
जन्माधिकरणम्
॥ [ॐ] जन्माद्यस्य यतः [ॐ]॥ १/१/२॥
शास्त्रयोनित्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] शास्त्रयोनित्वात् [ॐ]॥ १/१/३॥
समन्वयाधिकरणम्
॥ [ॐ] तत्तु समन्वयात् [ॐ]॥ १/१/४॥
ईक्षत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] ईक्षतेर्नाशब्दम् [ॐ]॥ १/१/५॥
॥ [ॐ] गौणश्चेन्नात्मशब्दात् [ॐ]॥ १/१/६॥
॥ [ॐ] तन्निष्ठस्य मोक्षोपदेशात् [ॐ]॥ १/१/७॥
॥ [ॐ] हेयत्वावचनाच्च [ॐ]॥ १/१/८॥
॥ [ॐ] स्वाप्ययात् [ॐ]॥ १/१/९॥
॥ [ॐ] गतिसामान्यात् [ॐ]॥ १/१/१०॥
॥ [ॐ] श्रुतत्वाच्च [ॐ]॥ १/१/११॥
आनन्दमयाधिकरणम्
॥ [ॐ] आनन्दमयोऽभ्यासात् [ॐ]॥ १/१/१२॥
॥ [ॐ] विकारशब्दान्नेति चेन्न प्राचुर्यात् [ॐ]॥ १/१/१३॥
॥ [ॐ] तद्धेतुव्यपदेशाच्च [ॐ]॥ १/१/१४॥
॥ [ॐ] मान्त्रवर्णिकमेव च गीयते [ॐ]॥ १/१/१५॥
॥ [ॐ] नेतरोऽनुपपत्तेः [ॐ]॥ १/१/१६॥
॥ [ॐ] भेदव्यपदेशाच्च [ॐ]॥ १/१/१७॥
॥ [ॐ] कामाच्च नानुमानापेक्षा [ॐ]॥ १/१/१८॥
॥ [ॐ] अस्मिन्नस्य च तद्योगं शास्ति [ॐ]॥ १/१/१९॥
अन्तःस्थत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] अन्तस्तद्धर्मोपदेशात् [ॐ]॥ १/१/२०॥
॥ [ॐ] भेदव्यपदेशाच्चान्यः [ॐ]॥ १/१/२१॥
आकाशाधिकरणम्
॥ [ॐ] आकाशस्तल्लिङ्गात् [ॐ]॥ १/१/२२॥
प्राणाधिकरणम्
॥ [ॐ] अत एव प्राणः [ॐ]॥ १/१/२३॥
ज्योतिरधिकरणम्
॥ [ॐ] ज्योतिश्चरणाभिधानात् [ॐ]॥ १/१/२४॥
गायत्र्यधिकरणम्
॥ [ॐ] छन्दोऽभिधानान्नेति चेन्न तथा चेतोऽर्पणनिगदात् तथाहि दर्शनम् [ॐ]॥ १/१/२५॥
॥ [ॐ] भूतादिपादव्यपदेशोपपत्तेश्चैवम् [ॐ]॥ १/१/२६॥
॥ [ॐ] उपदेशभेदान्नेति चेन्नोभयस्मिन्नप्यविरोधात् [ॐ]॥ १/१/२७॥
अन्तिमप्राणाधिकरणम्
॥ [ॐ] प्राणस्तथाऽनुगमात् [ॐ]॥ १/१/२८॥
॥ [ॐ] न वक्तुरात्मोपदेशादिति चेदध्यात्मसम्बन्धभूमा ह्यस्मिन् [ॐ]॥ १/१/२९॥
॥ [ॐ] शास्त्रदृष्ट्या तूपदेशो वामदेववत् [ॐ]॥ १/१/३०॥
॥ [ॐ] जीवमुख्यप्राणलिङ्गान्नेति चेन्नोपासात्रैविध्यादाश्रितत्वादिह तद्योगात् [ॐ]॥ १/१/३१॥
अन्यत्रप्रसिद्धलिङ्गात्मकशब्दसमन्वयपादः
॥ [ॐ] सर्वत्र प्रसिद्धोपदेशात् [ॐ]॥ १/२/१॥
सर्वगतत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] विवक्षितगुणोपपत्तेश्च [ॐ]॥ १/२/२॥
॥ [ॐ] अनुपपत्तेस्तु न शारीरः [ॐ]॥ १/२/३॥
॥ [ॐ] कर्मकर्तृव्यपदेशाच्च [ॐ]॥ १/२/४॥
॥ [ॐ] शब्दविशेषात् [ॐ]॥ १/२/५॥
॥ [ॐ] स्मृतेश्च [ॐ]॥ १/२/६॥
॥ [ॐ] अर्भकौकस्त्वात् तद्व्यपदेशाच्च नेति चेन्न निचाय्यत्वादेवं व्योमवच्च [ॐ]॥ १/२/७॥
॥ [ॐ] सम्भोगप्राप्तिरिति चेन्न वैशेष्यात् [ॐ]॥ १/२/८॥
अत्तृत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] अत्ता चराचरग्रहणात् [ॐ]॥ १/२/९॥
॥ [ॐ] प्रकरणाच्च [ॐ]॥ १/२/१०॥
गुहाधिकरणम्
॥ [ॐ] गुहां प्रविष्टावात्मानौ हि तद्दर्शनात् [ॐ]॥ १/२/११॥
॥ [ॐ] विशेषणाच्च [ॐ]॥ १/२/१२॥
अन्तराधिकरणम्
॥ [ॐ] अन्तर उपपत्तेः [ॐ]॥ १/२/१३॥
॥ [ॐ] स्थानादिव्यपदेशाच्च [ॐ]॥ १/२/१४॥
॥ [ॐ] सुखविशिष्टाभिधानादेव च [ॐ]॥ १/२/१५॥
॥ [ॐ] श्रुतोपनिषत्कगत्यभिधानाच्च [ॐ]॥ १/२/१६॥
॥ [ॐ] अनवस्थितेरसम्भवाच्च नेतरः [ॐ]॥ १/२/१७॥
अन्तर्याम्यधिकरणम्
॥ [ॐ] अन्तर्याम्यधिदैवादिषु तद्धर्मव्यपदेशात् [ॐ]॥ १/२/१८॥
॥ [ॐ] नच स्मार्तमतद्धर्माभिलापात् [ॐ]॥ १/२/१९॥
॥ [ॐ] शारीरश्चोभयेऽपि हि भेदेनैनमधीयते [ॐ]॥ १/२/२०॥
अदृश्यत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] अदृश्यत्वादिगुणको धर्मोक्तेः [ॐ]॥ १/२/२१॥
॥ [ॐ] विशेषणभेदव्यपदेशाभ्यां च नेतरौ [ॐ]॥ १/२/२२॥
॥ [ॐ] रूपोपन्यासाच्च [ॐ]॥ १/२/२३॥
वैश्वानराधिकरणम्
॥ [ॐ] वैश्वानरः साधारणशब्दविशेषात् [ॐ]॥ १/२/२४॥
॥ [ॐ] स्मर्यमाणमनुमानं स्यादिति [ॐ]॥ १/२/२५॥
॥ [ॐ] शब्दादिभ्योऽन्तःप्रतिष्ठानान्नेति चेन्न तथा दृष्ट्युपदेशादसम्भवात् पुरुषविधमपि चैनमधीयते [ॐ]॥ १/२/२६॥
॥ [ॐ] अत एव न देवता भूतं च [ॐ]॥ १/२/२७॥
॥ [ॐ] साक्षादप्यविरोधं जैमिनिः [ॐ]॥ १/२/२८॥
॥ [ॐ] अभिव्यक्तेरित्याश्मरथ्यः [ॐ]॥ १/२/२९॥
॥ [ॐ] अनुस्मृतेर्बादरिः [ॐ]॥ १/२/३०॥
॥ [ॐ] सम्पत्तेरिति जैमिनिस्तथा हि दर्शयति [ॐ]॥ १/२/३१॥
॥ [ॐ] आमनन्ति चैनमस्मिन् [ॐ]॥ १/२/३२॥
उभयत्रप्रसिद्धनामलिङ्गपादः
॥ [ॐ] द्युभ्वाद्यायतनं स्वशब्दात् [ॐ]॥ १/३/१॥
द्युभ्वाद्यधिकरणम्
॥ [ॐ] मुक्तोपसृप्यव्यपदेशात् [ॐ]॥ १/३/२॥
॥ [ॐ] नानुमानमतच्छब्दात् [ॐ]॥ १/३/३॥
॥ [ॐ] प्राणभृच्च [ॐ]॥ १/३/४॥
॥ [ॐ] भेदव्यपदेशात् [ॐ]॥ १/३/५॥
॥ [ॐ] प्रकरणात् [ॐ]॥ १/३/६॥
॥ [ॐ] स्थित्यदनाभ्यां च [ॐ]॥ १/३/७॥
भूमाधिकरणम्
॥ [ॐ] भूमा सम्प्रसादादध्युपदेशात् [ॐ]॥ १/३/८॥
॥ [ॐ] धर्मोपपत्तेश्च [ॐ]॥ १/३/९॥
अक्षराधिकरणम्
॥ [ॐ] अक्षरमम्बरान्तधृतेः [ॐ]॥ १/३/१०॥
॥ [ॐ] सा च प्रशासनात् [ॐ]॥ १/३/११॥
॥ [ॐ] अन्यभावव्यावृत्तेश्च [ॐ]॥ १/३/१२॥
सदधिकरणम्
॥ [ॐ] ईक्षतिकर्मव्यपदेशात् सः [ॐ]॥ १/३/१३॥
दहराधिकरणम्
॥ [ॐ] दहर उत्तरेभ्यः [ॐ]॥ १/३/१४॥
॥ [ॐ] गतिशब्दाभ्यां तथा हि दृष्टं लिङ्गं च [ॐ]॥ १/३/१५॥
॥ [ॐ] धृतेश्च महिम्नोऽस्यास्मिन्नुपलब्धेः [ॐ]॥ १/३/१६॥
॥ [ॐ] प्रसिद्धेश्च [ॐ]॥ १/३/१७॥
॥ [ॐ] इतरपरामर्शात् स इति चेन्नासम्भवात् [ॐ]॥ १/३/१८॥
॥ [ॐ] उत्तराच्चेदाविर्भूतस्वरूपस्तु [ॐ]॥ १/३/१९॥
॥ [ॐ] अन्यार्थश्च परामर्शः [ॐ]॥ १/३/२०॥
॥ [ॐ] अल्पश्रुतेरिति चेत् तदुक्तम् [ॐ]॥ १/३/२१॥
अनुकृत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] अनुकृतेस्तस्य च [ॐ]॥ १/३/२२॥
॥ [ॐ] अपि स्मर्यते [ॐ]॥ १/३/२३॥
वामनाधिकरणम्
॥ [ॐ] शब्दादेव प्रमितः [ॐ]॥ १/३/२४॥
॥ [ॐ] हृद्यपेक्षया तु मनुष्याधिकारत्वात् [ॐ]॥ १/३/२५॥
देवताधिकरणम्
॥ [ॐ] तदुपर्यपि बादरायणः सम्भवात् [ॐ]॥ १/३/२६॥
॥ [ॐ] विरोधः कर्मणीति चेन्नानेकप्रतिपत्तेर्दर्शनात् [ॐ]॥ १/३/२७॥
॥ [ॐ] शब्द इति चेन्नातः प्रभवात् प्रत्यक्षानुमानाभ्याम् [ॐ]॥ १/३/२८॥
॥ [ॐ] अत एव च नित्यत्वम् [ॐ]॥ १/३/२९॥
॥ [ॐ] समाननामरूपत्वाच्चावृत्तावप्यविरोधो दर्शनात् स्मृतेश्च [ॐ]॥ १/३/३०॥
॥ [ॐ] मध्वादिष्वसम्भवादनधिकारं जैमिनिः [ॐ]॥ १/३/३१॥
॥ [ॐ] ज्योतिषि भावाच्च [ॐ]॥ १/३/३२॥
॥ [ॐ] भावं तु बादरायणोऽस्ति हि [ॐ]॥ १/३/३३॥
अपशूद्राधिकरणम्
॥ [ॐ] शुगस्य तदनादरश्रवणात् तदाद्रवणात् सूच्यते हि [ॐ]॥ १/३/३४॥
॥ [ॐ] क्षत्रियत्वावगतेश्चोत्तरत्र चैत्ररथेन लिङ्गात् [ॐ]॥ १/३/३५॥
॥ [ॐ] संस्कारपरामर्शात् तदभावाभिलापाच्च [ॐ]॥ १/३/३६॥
॥ [ॐ] तदभावनिर्धारणे च प्रवृत्तेः [ॐ]॥ १/३/३७॥
॥ [ॐ] श्रवणाध्ययनार्थप्रतिषेधात् स्मृतेश्च [ॐ]॥ १/३/३८॥
कम्पनाधिकरणम्
॥ [ॐ] कम्पनात् [ॐ]॥ १/३/३९॥
ज्योतिरधिकरणम्
॥ [ॐ] ज्योतिर्दर्शनात् [ॐ]॥ १/३/४०॥
आकाशाधिकरणम्
॥ [ॐ] आकाशोऽर्थान्तरत्वादिव्यपदेशात् [ॐ]॥ १/३/४१॥
सुषुप्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] सुषुप्त्युत्क्रान्त्योर्भेदेन [ॐ]॥ १/३/४२॥
ब्राह्मणाधिकरणम्
॥ [ॐ] पत्यादिशब्देभ्यः [ॐ]॥ १/३/४३॥
अन्यत्रैवप्रसिद्धनामलिङ्गपादः
॥ [ॐ] आनुमानिकमप्येकेषामिति चेन्न शरीररूपकविन्यस्तगृहीतेर्दर्शयति च [ॐ]॥ १/४/१॥
आनुमानिकाधिकरणम्
॥ [ॐ] सूक्ष्मं तु तदर्हत्वात् [ॐ]॥ १/४/२॥
॥ [ॐ] तदधीनत्वादर्थवत् [ॐ]॥ १/४/३॥
॥ [ॐ] ज्ञेयत्वावचनाच्च [ॐ]॥ १/४/४॥
॥ [ॐ] वदतीति चेन्न प्राज्ञो हि [ॐ]॥ १/४/५॥
॥ [ॐ] प्रकरणात् [ॐ]॥ १/४/६॥
॥ [ॐ] त्रयाणामेव चैवमुपन्यासः प्रश्नश्च [ॐ]॥ १/४/७॥
॥ [ॐ] महद्वच्च [ॐ]॥ १/४/८॥
॥ [ॐ] चमसवदविशेषात् [ॐ]॥ १/४/९॥
ज्योतिरुपक्रमाधिकरणम्
॥ [ॐ] ज्योतिरुपक्रमात् तु तथा ह्यधीयत एके [ॐ]॥ १/४/१०॥
॥ [ॐ] कल्पनोपदेशाच्च मध्वादिवदविरोधः [ॐ]॥ १/४/११॥
नसङ्ख्योपसङ्ग्रहाधिकरणम्
॥ [ॐ] न सङ्ख्योपसङ्ग्रहादपि नानाभावादतिरेकाच्च [ॐ]॥ १/४/१२॥
॥ [ॐ] प्राणादयो वाक्यशेषात् [ॐ]॥ १/४/१३॥
॥ [ॐ] ज्योतिषैकेषामसत्यन्ने [ॐ]॥ १/४/१४॥
आकाशाधिकरणम् (कारणत्वेनाधिकरणम्)
॥ [ॐ] कारणत्वेन चाकाशादिषु यथाव्यपदिष्टोक्तेः [ॐ]॥ १/४/१५॥
समाकर्षाधिकरणम्
॥ [ॐ] समाकर्षात् [ॐ]॥ १/४/१६॥
॥ [ॐ] जगद्वाचित्वात् [ॐ]॥ १/४/१७॥
॥ [ॐ] जीवमुख्यप्राणलिङ्गादिति चेत् तद् व्याख्यातम् [ॐ]॥ १/४/१८॥
॥ [ॐ] अन्यार्थं तु जैमिनिः प्रश्नव्याख्यानाभ्यामपिचैवमेके [ॐ]॥ १/४/१९॥
॥ [ॐ] वाक्यान्वयात् [ॐ]॥ १/४/२०॥
॥ [ॐ] प्रतिज्ञासिद्धेर्लिङ्गमाश्मरथ्यः [ॐ]॥ १/४/२१॥
॥ [ॐ] उत्क्रमिष्यत एवम्भावादित्यौडुलोमिः [ॐ]॥ १/४/२२॥
॥ [ॐ] अवस्थितेरिति काशकृत्स्नः [ॐ]॥ १/४/२३॥
प्रकृत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] प्रकृतिश्च प्रतिज्ञादृष्टान्तानुपरोधात् [ॐ]॥ १/४/२४॥
॥ [ॐ] अभिध्योपदेशाच्च [ॐ]॥ १/४/२५॥
॥ [ॐ] साक्षाच्चोभयाम्नानात् [ॐ]॥ १/४/२६॥
॥ [ॐ] आत्मकृतेः परिणामात् [ॐ]॥ १/४/२७॥
॥ [ॐ] योनिश्च हि गीयते [ॐ]॥ १/४/२८॥
एतेन सर्वव्याख्याताधिकरणम्
॥ [ॐ] एतेन सर्वे व्याख्याता व्याख्याताः [ॐ]॥ १/४/२९॥
अविरोधाध्यायः
युक्तिपादः
॥ [ॐ] स्मृत्यनवकाशदोषप्रसङ्ग इति चेन्नान्यस्मृत्यनवकाशदोषप्रसङ्गात् [ॐ]॥ २/१/१॥
स्मृत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] इतरेषां चानुपलब्धेः [ॐ]॥ २/१/२॥
॥ [ॐ] एतेन योगः प्रत्युक्तः [ॐ]॥ २/१/३॥
नविलक्षणत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] न विलक्षणत्वादस्य तथात्वं च शब्दात् [ॐ]॥ २/१/४॥
॥ [ॐ] दृश्यते तु [ॐ]॥ २/१/५॥
अभिमान्यधिकरणम्
॥ [ॐ] अभिमानिव्यपदेशस्तु विशेषानुगतिभ्याम् [ॐ]॥ २/१/६॥
॥ [ॐ] दृश्यते च [ॐ]॥ २/१/७॥
असदधिकरणम्
॥ [ॐ] असदिति चेन्न प्रतिषेधमात्रत्वात् [ॐ]॥ २/१/८॥
॥ [ॐ] अपीतौ तद्वत्प्रसङ्गादसमञ्जसम् [ॐ]॥ २/१/९॥
॥ [ॐ] नतु दृष्टान्तभावात् [ॐ]॥ २/१/१०॥
॥ [ॐ] स्वपक्षदोषाच्च [ॐ]॥ २/१/११॥
॥ [ॐ] तर्काप्रतिष्ठानादप्यन्यथाऽनुमेयमिति चेदेवमप्यनिर्मोक्षप्रसङ्गः [ॐ]॥ २/१/१२॥
॥ [ॐ] एतेन शिष्टा अपरिग्रहा अपि व्याख्याताः [ॐ]॥ २/१/१३॥
भोक्त्रधिकरणम्
॥ [ॐ] भोक्त्रापत्तेरविभागश्चेत् स्याल्लोकवत् [ॐ]॥ २/१/१४॥
आरम्भणाधिकरणम्
॥ [ॐ] तदनन्यत्वमारम्भणशब्दादिभ्यः [ॐ]॥ २/१/१५॥
॥ [ॐ] भावे चोपलब्धेः [ॐ]॥ २/१/१६॥
॥ [ॐ] सत्वाच्चावरस्य [ॐ]॥ २/१/१७॥
॥ [ॐ] असद्व्यपदेशान्नेति चेन्न धर्मान्तरेण वाक्यशेषात् [ॐ]॥ २/१/१८॥
॥ [ॐ] युक्तेः शब्दान्तराच्च [ॐ]॥ २/१/१९॥
॥ [ॐ] पटवच्च [ॐ]॥ २/१/२०॥
॥ [ॐ] यथा प्राणादिः [ॐ]॥ २/१/२१॥
इतरव्यपदेशाधिकरणम्
॥ [ॐ] इतरव्यपदेशाद्धिताकरणादिदोषप्रसक्तिः [ॐ]॥ २/१/२२॥
॥ [ॐ] अधिकं तु भेदनिर्देशात् [ॐ]॥ २/१/२३॥
॥ [ॐ] अश्मादिवच्च तदनुपपत्तिः [ॐ]॥ २/१/२४॥
॥ [ॐ] उपसंहारदर्शनान्नेति चेत् क्षीरवद्धि [ॐ]॥ २/१/२५॥
॥ [ॐ] देवादिवदपि लोके [ॐ]॥ २/१/२६॥
॥ [ॐ] कृत्स्नप्रसक्तिर्निरवयवत्वशब्दकोपो वा [ॐ]॥ २/१/२७॥
श्रुतिशब्दमूलत्वाधिकरणम् (शब्दमूलत्वाधिकरणम्)
॥ [ॐ] श्रुतेस्तु शब्दमूलत्वात् [ॐ]॥ २/१/२८॥
॥ [ॐ] आत्मनि चैवं विचित्राश्च हि [ॐ]॥ २/१/२९॥
॥ [ॐ] स्वपक्षदोषाच्च [ॐ]॥ २/१/३०॥
॥ [ॐ] सर्वोपेता च तद्दर्शनात् [ॐ]॥ २/१/३१॥
॥ [ॐ] विकरणत्वान्नेति चेत् तदुक्तम् [ॐ]॥ २/१/३२॥
नप्रयोजनाधिकरणम्
॥ [ॐ] न प्रयोजनवत्त्वात् [ॐ]॥ २/१/३३॥
॥ [ॐ] लोकवत् तु लीलाकैवल्यम् [ॐ]॥ २/१/३४॥
वैषम्यनैर्घृण्याधिकरणम्
॥ [ॐ] वैषम्यनैर्घृण्ये न सापेक्षत्वात् तथा हि दर्शयति [ॐ]॥ २/१/३५॥
॥ [ॐ] न कर्माविभागादिति चेन्नानादित्वात् [ॐ]॥ २/१/३६॥
॥ [ॐ] उपपद्यते चाप्युपलभ्यते च [ॐ]॥ २/१/३७॥
सर्वधर्मोपपत्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] सर्वधर्मोपपत्तेश्च [ॐ]॥ २/१/३८॥
समयपादः
॥ [ॐ] रचनानुपपत्तेश्च नानुमानम् [ॐ]॥ २/२/१॥
रचनानुपपत्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] प्रवृत्तेश्च [ॐ]॥ २/२/२॥
॥ [ॐ] पयोऽम्बुवच्चेत् तत्रापि [ॐ]॥ २/२/३॥
॥ [ॐ] व्यतिरेकानवस्थितेश्चानपेक्षत्वात् [ॐ]॥ २/२/४॥
अन्यत्राभावाधिकरणम्
॥ [ॐ] अन्यत्राभावाच्च न तृणादिवत् [ॐ]॥ २/२/५॥
अभ्युपगमाधिकरणम्
॥ [ॐ] अभ्युपगमेऽप्यर्थाभावात् [ॐ]॥ २/२/६॥
पुरुषाश्माधिकरणम्
॥ [ॐ] पुरुषाश्मवदिति चेत् तथाऽपि [ॐ]॥ २/२/७॥
॥ [ॐ] अङ्गित्वानुपपत्तेः [ॐ]॥ २/२/८॥
अन्यथानुमित्यधिकरणम्
॥ [ॐ] अन्यथाऽनुमितौ च ज्ञशक्तिवियोगात् [ॐ]॥ २/२/९॥
॥ [ॐ] विप्रतिषेधाच्चासमञ्जसम् [ॐ]॥ २/२/१०॥
वैशेषिकाधिकरणम्
॥ [ॐ] महद्दीर्घवद् वा ह्रस्वपरिमण्डलाभ्याम् [ॐ]॥ २/२/११॥
॥ [ॐ] उभयथाऽपि न कर्मातस्तदभावः [ॐ]॥ २/२/१२॥
॥ [ॐ] समवायाभ्युपगमाच्च साम्यादनवस्थितेः [ॐ]॥ २/२/१३॥
॥ [ॐ] नित्यमेव च भावात् [ॐ]॥ २/२/१४॥
॥ [ॐ] रूपादिमत्त्वाच्च विपर्ययो दर्शनात् [ॐ]॥ २/२/१५॥
॥ [ॐ] उभयथा च दोषात् [ॐ]॥ २/२/१६॥
॥ [ॐ] अपरिग्रहाच्चात्यन्तमनपेक्षा [ॐ]॥ २/२/१७॥
समुदायाधिकरणम्
॥ [ॐ] समुदाय उभयहेतुकेऽपि तदप्राप्तिः [ॐ]॥ २/२/१८॥
॥ [ॐ] इतरेतरप्रत्ययत्वादिति चेन्नोत्पत्तिमात्रनिमित्तत्वात् [ॐ]॥ २/२/१९॥
॥ [ॐ] उत्तरोत्पादे च पूर्वनिरोधात् [ॐ]॥ २/२/२०॥
॥ [ॐ] असति प्रतिज्ञोपरोधो यौगपद्यमन्यथा [ॐ]॥ २/२/२१॥
॥ [ॐ] प्रतिसङ्ख्याप्रतिसङ्ख्यानिरोधाप्राप्तिरविच्छेदात् [ॐ]॥ २/२/२२॥
॥ [ॐ] उभयथा च दोषात् [ॐ]॥ २/२/२३॥
॥ [ॐ] आकाशे चाविशेषात् [ॐ]॥ २/२/२४॥
॥ [ॐ] अनुस्मृतेश्च [ॐ]॥ २/२/२५॥
असदधिकरणम्
॥ [ॐ] नासतोऽदृष्टत्वात् [ॐ]॥ २/२/२६॥
॥ [ॐ] उदासीनानामपि चैवं सिद्धिः [ॐ]॥ २/२/२७॥
॥ [ॐ] नाभाव उपलब्धेः [ॐ]॥ २/२/२८॥
॥ [ॐ] वैधर्म्याच्च न स्वप्नादिवत् [ॐ]॥ २/२/२९॥
अनुपलब्ध्यधिकरणम्
॥ [ॐ] न भावोऽनुपलब्धेः [ॐ]॥ २/२/३०॥
॥ [ॐ] क्षणिकत्वाच्च [ॐ]॥ २/२/३१॥
॥ [ॐ] सर्वथाऽनुपपत्तेश्च [ॐ]॥ २/२/३२॥
नैकस्मिन्नधिकरणम्
॥ [ॐ] नैकस्मिन्नसम्भवात् [ॐ]॥ २/२/३३॥
॥ [ॐ] एवञ्चात्माकार्त्स्न्यम् [ॐ]॥ २/२/३४॥
॥ [ॐ] नच पर्यायादप्यविरोधो विकारादिभ्यः [ॐ]॥ २/२/३५॥
॥ [ॐ] अन्त्यावस्थितेश्चोभयनित्यत्वादविशेषात् [ॐ]॥ २/२/३६॥
पत्युरधिकरणम्
॥ [ॐ] पत्युरसामञ्जस्यात् [ॐ]॥ २/२/३७॥
॥ [ॐ] सम्बन्धानुपपत्तेश्च [ॐ]॥ २/२/३८॥
॥ [ॐ] अधिष्ठानानुपपत्तेश्च [ॐ]॥ २/२/३९॥
॥ [ॐ] करणवच्चेन्न भोगादिभ्यः [ॐ]॥ २/२/४०॥
॥ [ॐ] अन्तवत्त्वमसर्वज्ञता वा [ॐ]॥ २/२/४१॥
उत्पत्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] उत्पत्त्यसम्भवात् [ॐ]॥ २/२/४२॥
॥ [ॐ] नच कर्तुः करणम् [ॐ]॥ २/२/४३॥
॥ [ॐ] विज्ञानादिभावे वा तदप्रतिषेधः [ॐ]॥ २/२/४४॥
॥ [ॐ] विप्रतिषेधाच्च [ॐ]॥ २/२/४५॥
श्रुतिपादः
॥ [ॐ] न वियदश्रुतेः [ॐ]॥ २/३/१॥
वियदधिकरणम्
॥ [ॐ] अस्ति तु [ॐ]॥ २/३/२॥
॥ [ॐ] गौण्यसम्भवात् [ॐ]॥ २/३/३॥
॥ [ॐ] शब्दाच्च [ॐ]॥ २/३/४॥
॥ [ॐ] स्याच्चैकस्य ब्रह्मशब्दवत् [ॐ]॥ २/३/५॥
॥ [ॐ] प्रतिज्ञाहानिरव्यतिरेकाच्छब्देभ्यः [ॐ]॥ २/३/६॥
॥ [ॐ] यावद्विकारं तु विभागो लोकवत् [ॐ]॥ २/३/७॥
मातरिश्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] एतेन मातरिश्वा व्याख्यातः [ॐ]॥ २/३/८॥
असम्भवाधिकरणम्
॥ [ॐ] असम्भवस्तु सतोऽनुपपत्तेः [ॐ]॥ २/३/९॥
तेजोऽधिकरणम्
॥ [ॐ] तेजोऽतस्तथा ह्याह [ॐ]॥ २/३/१०॥
अबधिकरणम्
॥ [ॐ] आपः [ॐ]॥ २/३/११॥
पृथिव्यधिकरणम्
॥ [ॐ] पृथिव्यधिकाररूपशब्दान्तरादिभ्यः [ॐ]॥ २/३/१२॥
तदभिध्यानाधिकरणम्
॥ [ॐ] तदभिध्यानादेव तु तल्लिङ्गात् सः [ॐ]॥ २/३/१३॥
विपर्ययाधिकरणम्
॥ [ॐ] विपर्ययेण तु क्रमोऽत उपपद्यते च [ॐ]॥ २/३/१४॥
अन्तराधिकरणम् (अन्तराविज्ञानाधिकरणम्)
॥ [ॐ] अन्तरा विज्ञानमनसी क्रमेण तल्लिङ्गादिति चेन्नाविशेषात् [ॐ]॥ २/३/१५॥
॥ [ॐ] चराचरव्यपाश्रयस्तु स्यात् तद्व्यपदेशो भाक्तस्तद्भावभावित्वात् [ॐ]॥ २/३/१६॥
आत्माधिकरणम्
॥ [ॐ] नात्माऽश्रुतेर्नित्यत्वाच्च ताभ्यः [ॐ]॥ २/३/१७॥
ज्ञाधिकरणम्
॥ [ॐ] ज्ञोऽत एव [ॐ]॥ २/३/१८॥
॥ [ॐ] युक्तेश्च [ॐ]॥ २/३/१९॥
उत्क्रान्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] उत्क्रान्तिगत्यागतीनाम् [ॐ]॥ २/३/२०॥
॥ [ॐ] स्वात्मना चोत्तरयोः [ॐ]॥ २/३/२१॥
॥ [ॐ] नाणुरतच्छ्रुतेरिति चेन्नेतराधिकारात् [ॐ]॥ २/३/२२॥
॥ [ॐ] स्वशब्दोन्मानाभ्यां च [ॐ]॥ २/३/२३॥
॥ [ॐ] अविरोधश्चन्दनवत् [ॐ]॥ २/३/२४॥
॥ [ॐ] अवस्थितिवैशेष्यादिति चेन्नाभ्युपगमाद्धृदि हि [ॐ]॥ २/३/२५॥
॥ [ॐ] गुणाद् वाऽऽलोकवत् [ॐ]॥ २/३/२६॥
व्यतिरेकाधिकरणम्
॥ [ॐ] व्यतिरेको गन्धवत् तथा च दर्शयति [ॐ]॥ २/३/२७॥
पृथगुपदेशाधिकरणम्
॥ [ॐ] पृथगुपदेशात् [ॐ]॥ २/३/२८॥
॥ [ॐ] तद्गुणसारत्वात् तु तद्व्यपदेशः प्राज्ञवत् [ॐ]॥ २/३/२९॥
यावदधिकरणम्
॥ [ॐ] यावदात्मभावित्वाच्च न दोषस्तद्दर्शनात् [ॐ]॥ २/३/३०॥
पुंस्त्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] पुंस्त्वादिवत्त्वस्य सतोऽभिव्यक्तियोगात् [ॐ]॥ २/३/३१॥
॥ [ॐ] नित्योपलब्ध्यनुपलब्धिप्रसङ्गोऽन्यतरनियमो वाऽन्यथा [ॐ]॥ २/३/३२॥
कर्तृत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] कर्ता शास्त्रार्थवत्त्वात् [ॐ]॥ २/३/३३॥
॥ [ॐ] विहारोपदेशात् [ॐ]॥ २/३/३४॥
॥ [ॐ] उपादानात् [ॐ]॥ २/३/३५॥
॥ [ॐ] व्यपदेशाच्च क्रियायां न चेन्निर्देशविपर्ययः [ॐ]॥ २/३/३६॥
॥ [ॐ] उपलब्धिवदनियमः [ॐ]॥ २/३/३७॥
॥ [ॐ] शक्तिविपर्ययात् [ॐ]॥ २/३/३८॥
॥ [ॐ] समाध्यभावाच्च [ॐ]॥ २/३/३९॥
॥ [ॐ] यथा च तक्षोभयथा [ॐ]॥ २/३/४०॥
॥ [ॐ] परात् तु तच्छ्रुतेः [ॐ]॥ २/३/४१॥
॥ [ॐ] कृतप्रयत्नापेक्षस्तु विहितप्रतिषेधावैयर्थ्यादिभ्यः [ॐ]॥ २/३/४२॥
अंशाधिकरणम्
॥ [ॐ] अंशो नानाव्यपदेशादन्यथा चापि दाशकितवादित्वमधीयत एके [ॐ]॥ २/३/४३॥
॥ [ॐ] मन्त्रवर्णात् [ॐ]॥ २/३/४४॥
॥ [ॐ] अपि स्मर्यते [ॐ]॥ २/३/४५॥
॥ [ॐ] प्रकाशादिवन्नैवं परः [ॐ]॥ २/३/४६॥
॥ [ॐ] स्मरन्ति च [ॐ]॥ २/३/४७॥
॥ [ॐ] अनुज्ञापरिहारौ देहसम्बन्धाज्ज्योतिरादिवत् [ॐ]॥ २/३/४८॥
॥ [ॐ] असन्ततेश्चाव्यतिकरः [ॐ]॥ २/३/४९॥
॥ [ॐ] आभास एव च [ॐ]॥ २/३/५०॥
अदृष्टाधिकरणम्
॥ [ॐ] अदृष्टानियमात् [ॐ]॥ २/३/५१॥
॥ [ॐ] अभिसन्ध्यादिष्वपि चैवम् [ॐ]॥ २/३/५२॥
॥ [ॐ] प्रदेशादिति चेन्नान्तर्भावात् [ॐ]॥ २/३/५३॥
युक्तिसहितश्रुतिपादः
॥ [ॐ] तथा प्राणाः [ॐ]॥ २/४/१॥
प्राणाधिकरणम् (प्राणोत्पत्त्यधिकरणम्)
॥ [ॐ] गौण्यसम्भवात् [ॐ]॥ २/४/२॥
॥ [ॐ] प्रतिज्ञानुपरोधाच्च [ॐ]॥ २/४/३॥
मनोधिकरणम् (तत्प्रागधिकरणम्)
॥ [ॐ] तत्प्राक्छ्रुतेश्च [ॐ]॥ २/४/४॥
वागधिकरणम् (तत्पूर्वकत्वाधिकरणम्)
॥ [ॐ] तत्पूर्वकत्वाद् वाचः [ॐ]॥ २/४/५॥
सप्तगत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] सप्त गतेर्विशेषितत्वाच्च [ॐ]॥ २/४/६॥
॥ [ॐ] हस्तादयस्तु स्थितेऽतो नैवम् [ॐ]॥ २/४/७॥
अण्वधिकरणम्
॥ [ॐ] अणवश्च [ॐ]॥ २/४/८॥
मुख्यप्राणाधिकरणम्
॥ [ॐ] श्रेष्ठश्च [ॐ]॥ २/४/१०॥
॥ [ॐ] न वायुक्रिये पृथगुपदेशात् [ॐ]॥ २/४/१०॥
चक्षुराद्यधिकरणम्
॥ [ॐ] चक्षुरादिवत् तु तत्सहशिष्ट्यादिभ्यः [ॐ]॥ २/४/११॥
॥ [ॐ] अकरणत्वाच्च न दोषस्तथा हि दर्शयति [ॐ]॥ २/४/१२॥
पञ्चवृत्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] पञ्चवृत्तिर्मनोवद् व्यपदिश्यते [ॐ]॥ २/४/१३॥
प्राणाणुत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] अणुश्च [ॐ]॥ २/४/१४॥
ज्योतिरधिकरणम्
॥ [ॐ] ज्योतिराद्यधिष्ठानं तु तदामननात् [ॐ]॥ २/४/१५॥
॥ [ॐ] प्राणवता शब्दात् [ॐ]॥ २/४/१६॥
॥ [ॐ] तस्य च नित्यत्वात् [ॐ]॥ २/४/१७॥
इन्द्रियाधिकरणम्
॥ [ॐ] त इन्द्रियाणि तद्व्यपदेशादन्यत्र श्रेष्ठात् [ॐ]॥ २/४/१८॥
॥ [ॐ] भेदश्रुतेः [ॐ]॥ २/४/१९॥
॥ [ॐ] वैलक्षण्याच्च [ॐ]॥ २/४/२०॥
संज्ञाधिकरणम्
॥ [ॐ] संज्ञामूर्तिकॢप्तिस्तु त्रिवृत्कुर्वत उपदेशात् [ॐ]॥ २/४/२१॥
मांसाधिकरणम्
॥ [ॐ] मांसादि भौमं यथाशब्दमितरयोश्च [ॐ]॥ २/४/२२॥
॥ [ॐ] वैशेष्यात् तु तद्वादस्तद्वादः [ॐ]॥ २/४/२३॥
साधनाध्यायः
वैराग्यपादः
॥ [ॐ] तदन्तरप्रतिपत्तौ रंहति सम्परिष्वक्तः प्रश्ननिरूपणाभ्याम् [ॐ]॥ ३/१/१॥
तदन्तराधिकरणम्
त्र्यात्मकत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] त्र्यात्मकत्वात् तु भूयस्त्वात् [ॐ]॥ ३/१/२॥
प्राणगत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] प्राणगतेश्च [ॐ]॥ ३/१/३॥
अग्न्याद्यधिकरणम्
॥ [ॐ] अग्न्यादिगतिश्रुतेरिति चेन्न भाक्तत्वात् [ॐ]॥ ३/१/४॥
प्रथमश्रवणाधिकरणम्
॥ [ॐ] प्रथमेऽश्रवणादिति चेन्न ता एव ह्युपपत्तेः [ॐ]॥ ३/१/५॥
अश्रुतत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] अश्रुतत्वादिति चेन्नेष्टादिकारिणां प्रतीतेः [ॐ]॥ ३/१/६॥
भाक्ताधिकरणम्
॥ [ॐ] भाक्तं वाऽनात्मवित्त्वात् तथा हि दर्शयति [ॐ]॥ ३/१/७॥
कृतात्ययाधिकरणम्
॥ [ॐ] कृतात्ययेऽनुशयवान् दृष्टस्मृतिभ्याम् [ॐ]॥ ३/१/८॥
यथेताधिकरणम्
॥ [ॐ] यथेतमनेवं च [ॐ]॥ ३/१/९॥
चरणाधिकरणम्
॥ [ॐ] चरणादिति चेन्न तदुपलक्षणार्थेति कार्ष्णाजिनिः [ॐ]॥ ३/१/१०॥
॥ [ॐ] आनर्थक्यमिति चेन्न तदपेक्षत्वात् [ॐ]॥ ३/१/११॥
॥ [ॐ] सुकृतदुष्कृते एवेति तु बादरिः [ॐ]॥ ३/१/१२॥
अनिष्टादिकार्यधिकरणम्
॥ [ॐ] अनिष्टादिकारिणामपि च श्रुतम् [ॐ]॥ ३/१/१३॥
॥ [ॐ] संयमने त्वनुभूयेतरेषामारोहावरोहौ तद्गतिदर्शनात् [ॐ]॥ ३/१/१४॥
॥ [ॐ] स्मरन्ति च [ॐ]॥ ३/१/१५॥
सप्ताधिकरणम् (अपिसप्ताधिकरणम्)
॥ [ॐ] अपि सप्त [ॐ]॥ ३/१/१६॥
तद्व्यापाराधिकरणम् (तत्राप्यधिकरणम्)
॥ [ॐ] तत्रापि च तद्व्यापारादविरोधः [ॐ]॥ ३/१/१७॥
विद्याकर्माधिकरणम्
॥ [ॐ] विद्याकर्मणोरिति तु प्रकृतत्वात् [ॐ]॥ ३/१/१८॥
नतृतीयाधिकरणम्
॥ [ॐ] न तृतीये तथोपलब्धेः [ॐ]॥ ३/१/१९॥
॥ [ॐ] स्मर्यतेऽपि च लोके [ॐ]॥ ३/१/२०॥
॥ [ॐ] दर्शनाच्च [ॐ]॥ ३/१/२१॥
॥ [ॐ] तृतीये शब्दावरोधः संशोकजस्य [ॐ]॥ ३/१/२२॥
॥ [ॐ] स्मरणाच्च [ॐ]॥ ३/१/२३॥
तत्स्वाभाव्याधिकरणम्
॥ [ॐ] तत्स्वाभाव्यापत्तिरुपपत्तेः [ॐ]॥ ३/१/२४॥
नातिचिरेणाधिकरणम्
॥ [ॐ] नातिचिरेण विशेषात् [ॐ]॥ ३/१/२५॥
अन्याधिष्ठिताधिकरणम् (अन्याधिकरणम्)
॥ [ॐ] अन्याधिष्ठिते पूर्ववदभिलापात् [ॐ]॥ ३/१/२६॥
॥ [ॐ] अशुद्धमिति चेन्न शब्दात् [ॐ]॥ ३/१/२७॥
रेतोऽधिकरणम्
॥ [ॐ] रेतःसिग्योगोऽथ [ॐ]॥ ३/१/२८॥
योन्यधिकरणम्
॥ [ॐ] योनेः शरीरम् [ॐ]॥ ३/१/२९॥
भक्तिपादः
॥ [ॐ] सन्ध्ये सृष्टिराह हि [ॐ]॥ ३/२/१॥
सन्ध्याधिकरणम्
॥ [ॐ] निर्मातारं चैके पुत्रादयश्च [ॐ]॥ ३/२/२॥
॥ [ॐ] मायामात्रं तु कार्त्स्न्येनानभिव्यक्तस्वरूपत्वात् [ॐ]॥ ३/२/३॥
॥ [ॐ] सूचकश्च हि श्रुतेराचक्षते च तद्विदः [ॐ]॥ ३/२/४॥
पराभिध्यानाधिकरणम्
॥ [ॐ] पराभिध्यानात् तु तिरोहितं ततो ह्यस्य बन्धविपर्ययौ [ॐ]॥ ३/२/५॥
देहयोगाधिकरणम्
॥ [ॐ] देहयोगाद् वासोऽपि [ॐ]॥ ३/२/६॥
तदभावाधिकरणम्
॥ [ॐ] तदभावो नाडीषु तच्छ्रुतेरात्मनि ह [ॐ]॥ ३/२/७॥
प्रबोधाधिकरणम्
॥ [ॐ] अतः प्रबोधोऽस्मात् [ॐ]॥ ३/२/८॥
कर्मानुस्मृत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] स एव च कर्मानुस्मृतिशब्दविधिभ्यः [ॐ]॥ ३/२/९॥
मुग्धप्राप्त्यधिकरणम् (मुग्धेऽर्धसम्पत्त्यधिकरणम्)
॥ [ॐ] मुग्धेऽर्धसम्पत्तिः परिशेषात् [ॐ]॥ ३/२/१०॥
स्थानतोऽप्यभेदाधिकरणम् (नस्थानतोऽधिकरणम्)
॥ [ॐ] न स्थानतोऽपि परस्योभयलिङ्गं सर्वत्र हि [ॐ]॥ ३/२/११॥
॥ [ॐ] न भेदादिति चेन्न प्रत्येकमतद्वचनात् [ॐ]॥ ३/२/१२॥
॥ [ॐ] अपि चैवमेके [ॐ]॥ ३/२/१३॥
अरूपाधिकरणम् (अरूपवदधिकरणम्)
॥ [ॐ] अरूपवदेव हि तत्प्रधानत्वात् [ॐ]॥ ३/२/१४॥
॥ [ॐ] प्रकाशवच्चावैयर्थ्यम् [ॐ]॥ ३/२/१५॥
॥ [ॐ] आह च तन्मात्रम् [ॐ]॥ ३/२/१६॥
॥ [ॐ] दर्शयति चाथो अपि स्मर्यते [ॐ]॥ ३/२/१७॥
उपमाधिकरणम्
॥ [ॐ] अत एव चोपमा सूर्यकादिवत् [ॐ]॥ ३/२/१८॥
अम्बुवदधिकरणम्
॥ [ॐ] अम्बुवदग्रहणात् तु न तथात्वम् [ॐ]॥ ३/२/१९॥
वृद्धिह्रासाधिकरणम्
॥ [ॐ] वृद्धिह्रासभाक्त्वमन्तर्भावादुभयसामञ्जस्यादेवम् [ॐ]॥ ३/२/२०॥
॥ [ॐ] दर्शनाच्च [ॐ]॥ ३/२/२१॥
पालकत्वाधिकरणम् (प्रकृतैतावत्त्वाधिकरणम्)
॥ [ॐ] प्रकृतैतावत्त्वं हि प्रतिषेधति ततो ब्रवीति च भूयः [ॐ]॥ ३/२/२२॥
अव्यक्ताधिकरणम् (तदव्यक्ताधिकरणम्)
॥ [ॐ] तदव्यक्तमाह हि [ॐ]॥ ३/२/२३॥
॥ [ॐ] अपि संराधने प्रत्यक्षानुमानाभ्याम् [ॐ]॥ ३/२/२४॥
॥ [ॐ] प्रकाशवच्चावैशेष्यम् [ॐ]॥ ३/२/२५॥
॥ [ॐ] प्रकाशश्च कर्मण्यभ्यासात् [ॐ]॥ ३/२/२६॥
॥ [ॐ] अतोऽनन्तेन तथाहि लिङ्गम् [ॐ]॥ ३/२/२७॥
उभयव्यपदेशाधिकरणम् (अहिकुण्डलाधिकरणम्)
॥ [ॐ] उभयव्यपदेशात् त्वहिकुण्डलवत् [ॐ]॥ ३/२/२८॥
॥ [ॐ] प्रकाशाश्रयवद् वा तेजस्त्वात् [ॐ]॥ ३/२/२९॥
॥ [ॐ] पूर्ववद् वा [ॐ]॥ ३/२/३०॥
॥ [ॐ] प्रतिषेधाच्च [ॐ]॥ ३/२/३१॥
परमताधिकरणम्
॥ [ॐ] परमतः सेतून्मानसम्बन्धभेदव्यपदेशेभ्यः [ॐ]॥ ३/२/३२॥
॥ [ॐ] दर्शनात् [ॐ]॥ ३/२/३३॥
॥ [ॐ] बुद्ध्यर्थः पादवत् [ॐ]॥ ३/२/३४॥
स्थानविशेषाधिकरणम्
॥ [ॐ] स्थानविशेषात् प्रकाशादिवत् [ॐ]॥ ३/२/३५॥
॥ [ॐ] उपपत्तेश्च [ॐ]॥ ३/२/३६॥
प्रतिषेधाधिकरणम् (तथाऽन्यदधिकरणम्)
॥ [ॐ] तथाऽन्यत् प्रतिषेधात् [ॐ]॥ ३/२/३७॥
सर्वगतत्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] अनेन सर्वगतत्वमायामयशब्दादिभ्यः [ॐ]॥ ३/२/३८॥
फलोपपत्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] फलमत उपपत्तेः [ॐ]॥ ३/२/३९॥
॥ [ॐ] श्रुतत्वाच्च [ॐ]॥ ३/२/४०॥
॥ [ॐ] धर्मं जैमिनिरत एव [ॐ]॥ ३/२/४१॥
॥ [ॐ] पूर्वं तु बादरायणो हेतुव्यपदेशात् [ॐ]॥ ३/२/४२॥
उपासनापादः
॥ [ॐ] सर्ववेदान्तप्रत्ययं चोदनाद्यविशेषात् [ॐ]॥ ३/३/१॥
सर्ववेदान्तप्रत्ययाधिकरणम्
॥ [ॐ] भेदान्नेति चेदेकस्यामपि [ॐ]॥ ३/३/२॥
॥ [ॐ] स्वाध्यायस्य तथात्वेन हि समाचारेऽधिकाराच्च [ॐ]॥ ३/३/३॥
॥ [ॐ] सलिलवच्च तन्नियमः [ॐ]॥ ३/३/४॥
॥ [ॐ] दर्शयति च [ॐ]॥ ३/३/५॥
उपसंहाराधिकरणम्
॥ [ॐ] उपसंहारोऽर्थाभेदाद् विधिशेषवत् समाने च [ॐ]॥ ३/३/६॥
॥ [ॐ] अन्यथात्वं (च) शब्दादिति चेन्नाविशेषात् [ॐ]॥ ३/३/७॥
॥ [ॐ] न वा प्रकरणभेदात् परोवरीयस्त्वादिवत् [ॐ]॥ ३/३/८॥
॥ [ॐ] सञ्ज्ञातश्चेत् तदुक्तमस्ति तु तदपि [ॐ]॥ ३/३/९॥
प्राप्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] प्राप्तेश्च समञ्जसम् [ॐ]॥ ३/३/१०॥
सर्वाभेदाधिकरणम्
॥ [ॐ] सर्वाभेदादन्यत्रेमे [ॐ]॥ ३/३/११॥
आनन्दाद्यधिकरणम्
॥ [ॐ] आनन्दादयः प्रधानस्य [ॐ]॥ ३/३/१२॥
प्रियशिरस्त्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] प्रियशिरस्त्वाद्यप्राप्तिरुपचयापचयौ हि भेदे [ॐ]॥ ३/३/१३॥
इतराधिकरणम्
॥ [ॐ] इतरे त्वर्थसामान्यात् [ॐ]॥ ३/३/१४॥
आध्यानाधिकरणम्
॥ [ॐ] आध्यानाय प्रयोजनाभावात् [ॐ]॥ ३/३/१५॥
॥ [ॐ] आत्मशब्दाच्च [ॐ]॥ ३/३/१६॥
आत्मगृहीत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] आत्मगृहीतिरितरवदुत्तरात् [ॐ]॥ ३/३/१७॥
अन्वयाधिकरणम्
॥ [ॐ] अन्वयादिति चेत् स्यादवधारणात् [ॐ]॥ ३/३/१८॥
कार्याख्यानाधिकरणम्
॥ [ॐ] कार्याख्यानादपूर्वम् [ॐ]॥ ३/३/१९॥
समानाधिकरणम्
॥ [ॐ] समान एवञ्चाभेदात् [ॐ]॥ ३/३/२०॥
॥ [ॐ] सम्बन्धादेवमन्यत्रापि [ॐ]॥ ३/३/२१॥
विशेषाधिकरणम् (नवाधिकरणम्)
॥ [ॐ] न वा विशेषात् [ॐ]॥ ३/३/२२॥
॥ [ॐ] दर्शयति च [ॐ]॥ ३/३/२३॥
सम्भृत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] सम्भृतिद्युव्याप्त्यपि चातः [ॐ]॥ ३/३/२४॥
पुरुषविद्याधिकरणम्
॥ [ॐ] पुरुषविद्यायामपि चेतरेषामनाम्नानात् [ॐ]॥ ३/३/२५॥
वेधाद्यधिकरणम्
॥ [ॐ] वेधाद्यर्थभेदात् [ॐ]॥ ३/३/२६॥
हान्यधिकरणम्
॥ [ॐ] हानौ तूपायनशब्दशेषत्वात् कुशाच्छन्दस्तुत्युपगानवत् तदुक्तम् [ॐ]॥ ३/३/२७॥
॥ [ॐ] साम्पराये तर्तव्याभावात् तथा ह्यन्ये [ॐ]॥ ३/३/२८॥
छन्दाधिकरणम्
॥ [ॐ] छन्दत उभयाविरोधात् [ॐ]॥ ३/३/२९॥
॥ [ॐ] गतेरर्थवत्त्वमुभयथाऽन्यथा हि विरोधः [ॐ]॥ ३/३/३०॥
॥ [ॐ] उपपन्नस्तल्लक्षणार्थोपलब्धेर्लोकवत् [ॐ]॥ ३/३/३१॥
अनियमाधिकरणम्
॥ [ॐ] अनियमः सर्वेषामविरोधाच्छब्दानुमानाभ्याम् [ॐ]॥ ३/३/३२॥
यावदधिकरणम्
॥ [ॐ] यावदधिकारमवस्थितिराधिकारिकाणाम् [ॐ]॥ ३/३/३३॥
॥ [ॐ] अक्षरधियां त्वविरोधः सामान्यतद्भावाभ्यामौपसदवत् तदुक्तम् [ॐ]॥ ३/३/३४॥
इयदामननाधिकरणम्
॥ [ॐ] इयदामननात् [ॐ]॥ ३/३/३५॥
॥ [ॐ] अन्तरा भूतग्रामवदिति चेत्तदुक्तम् [ॐ]॥ ३/३/३६॥
॥ [ॐ] अन्यथा भेदानुपपत्तिरिति चेन्नोपदेशवत् [ॐ]॥ ३/३/३७॥
व्यतिहाराधिकरणम्
॥ [ॐ] व्यतिहारो विशिंषन्ति हीतरवत् [ॐ]॥ ३/३/३८॥
सत्याद्यधिकरणम्
॥ [ॐ] सैव हि सत्यादयः [ॐ]॥ ३/३/३९॥
कामाधिकरणम्
॥ [ॐ] कामादितरत्र तत्र चायतनादिभ्यः [ॐ]॥ ३/३/४०॥
॥ [ॐ] आदरादलोपः [ॐ]॥ ३/३/४१॥
॥ [ॐ] उपस्थितेस्तद्वचनात् [ॐ]॥ ३/३/४२॥
निर्धारणाधिकरणम्
॥ [ॐ] तन्निर्धारणार्थनियमस्तदृष्टेः पृथग्घ्यप्रतिबन्धः फलम् [ॐ]॥ ३/३/४३॥
प्रदानाधिकरणम्
॥ [ॐ] प्रदानवदेव हि तदुक्तम् [ॐ]॥ ३/३/४४॥
गुरुप्रसादाधिकरणम् (लिङ्गभूयस्त्वाधिकरणम्)
॥ [ॐ] लिङ्गभूयस्त्वात् तद्धि बलीयस्तदपि [ॐ]॥ ३/३/४५॥
पूर्वविकल्पाधिकरणम्
॥ [ॐ] पूर्वविकल्पः प्रकरणात् स्यात् क्रियामानसवत् [ॐ]॥ ३/३/४६॥
॥ [ॐ] अतिदेशाच्च [ॐ]॥ ३/३/४७॥
विद्याधिकरणम्
॥ [ॐ] विद्यैव तु निर्धारणात् [ॐ]॥ ३/३/४८॥
॥ [ॐ] दर्शनाच्च [ॐ]॥ ३/३/४९॥
अबाधाधिकरणम् (श्रुत्याद्यधिकरणम्)
॥ [ॐ] श्रुत्यादिबलीयस्त्वाच्च न बाधः [ॐ]॥ ३/३/५०॥
अनुबन्धाद्यधिकरणम्
॥ [ॐ] अनुबन्धादिभ्यः [ॐ]॥ ३/३/५१॥
दर्शनभेदाधिकरणम् (प्रज्ञान्तराधिकरणम्)
॥ [ॐ] प्रज्ञान्तरपृथक्त्ववद् दृष्टिश्च तदुक्तम् [ॐ]॥ ३/३/५२॥
नसामान्याधिकरणम्
॥ [ॐ] न सामान्यादप्युपलब्धेर्मृत्युवन्न हि लोकापत्तिः [ॐ]॥ ३/३/५३॥
ताद्विध्याधिकरणम् (परेणाधिकरणम्)
॥ [ॐ] परेण चशब्दस्य ताद्विध्यं भूयस्त्वात् त्वनुबन्धः [ॐ]॥ ३/३/५४॥
एकाधिकरणम्
॥ [ॐ] एक आत्मनः शरीरे भावात् [ॐ]॥ ३/३/५५॥
॥ [ॐ] व्यतिरेकस्तद्भावभावित्वान्न तूपलब्धिवत् [ॐ]॥ ३/३/५६॥
अङ्गावबद्धाधिकरणम्
॥ [ॐ] अङ्गावबद्धास्तु न शाखासु हि प्रतिवेदम् [ॐ]॥ ३/३/५७॥
॥ [ॐ] मन्त्रादिवद् वाऽविरोधः [ॐ]॥ ३/३/५८॥
भूमाधिकरणम्
॥ [ॐ] भूम्नः क्रतुवज्ज्यायस्त्वं तथाच दर्शयति [ॐ]॥ ३/३/५९॥
नानाशब्दाधिकरणम्
॥ [ॐ] नाना शब्दादिभेदात् [ॐ]॥ ३/३/६०॥
विकल्पाधिकरणम्
॥ [ॐ] विकल्पो विशिष्टफलत्वात् [ॐ]॥ ३/३/६१॥
काम्याधिकरणम्
॥ [ॐ] काम्यास्तु यथाकामं समुच्चीयेरन्न वा पूर्वहेत्वभावात् [ॐ]॥ ३/३/६२॥
अङ्गाधिकरणम्
॥ [ॐ] अङ्गेषु यथाऽऽश्रयभावः [ॐ]॥ ३/३/६३॥
॥ [ॐ] शिष्टेश्च [ॐ]॥ ३/३/६४॥
॥ [ॐ] समाहारात् [ॐ]॥ ३/३/६५॥
॥ [ॐ] गुणसाधारण्यश्रुतेश्च [ॐ]॥ ३/३/६६॥
नवाधिकरणम्
॥ [ॐ] न वाऽतत्सहभावश्रुतेः [ॐ]॥ ३/३/६७॥
॥ [ॐ] दर्शनाच्च [ॐ]॥ ३/३/६८॥
ज्ञानपादः
॥ [ॐ] पुरुषार्थोऽतः शब्दादिति बादरायणः [ॐ]॥ ३/४/१॥
पुरुषार्थाधिकरणम्
॥ [ॐ] शेषत्वात् पुरुषार्थवादो यथाऽन्येष्विति जैमिनिः [ॐ]॥ ३/४/२॥
॥ [ॐ] आचारदर्शनात् [ॐ]॥ ३/४/३॥
॥ [ॐ] तच्छ्रुतेः [ॐ]॥ ३/४/४॥
॥ [ॐ] समन्वारम्भणात् [ॐ]॥ ३/४/५॥
॥ [ॐ] तद्वतो विधानात् [ॐ]॥ ३/४/६॥
॥ [ॐ] नियमाच्च [ॐ]॥ ३/४/७॥
॥ [ॐ] अधिकोपदेशात् तु बादरायणस्यैवं तद्दर्शनात् [ॐ]॥ ३/४/८॥
॥ [ॐ] तुल्यं तु दर्शनम् [ॐ]॥ ३/४/९॥
असार्वत्रिकाधिकरणम्
॥ [ॐ] असार्वत्रिकी [ॐ]॥ ३/४/१०॥
॥ [ॐ] विभागः शतवत् [ॐ]॥ ३/४/११॥
॥ [ॐ] अध्ययनमात्रवतः [ॐ]॥ ३/४/१२॥
अविशेषाधिकरणम्
॥ [ॐ] नाविशेषात् [ॐ]॥ ३/४/१३॥
स्तुत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] स्तुतयेऽनुमतिर्वा [ॐ]॥ ३/४/१४॥
॥ [ॐ] कामकारेण चैके [ॐ]॥ ३/४/१५॥
॥ [ॐ] उपमर्दं च [ॐ]॥ ३/४/१६॥
॥ [ॐ] ऊर्ध्वरेतस्सु च शब्दे हि [ॐ]॥ ३/४/१७॥
॥ [ॐ] परामर्शं जैमिनिरचोदना चापवदति हि [ॐ]॥ ३/४/१८॥
॥ [ॐ] अनुष्ठेयं बादरायणः साम्यश्रुतेः [ॐ]॥ ३/४/१९॥
॥ [ॐ] विधिर्वा धारणवत् [ॐ]॥ ३/४/२०॥
॥ [ॐ] स्तुतिमात्रमुपादानादिति चेन्नापूर्वत्वात् [ॐ]॥ ३/४/२१॥
॥ [ॐ] भावशब्दाच्च [ॐ]॥ ३/४/२२॥
॥ [ॐ] पारिप्लवार्था इति चेन्न विशेषितत्वात् [ॐ]॥ ३/४/२३॥
॥ [ॐ] तथा चैकवाक्योपबन्धात् [ॐ]॥ ३/४/२४॥
॥ [ॐ] अत एव चाग्नीन्धनाद्यनपेक्षा [ॐ]॥ ३/४/२५॥
॥ [ॐ] सर्वापेक्षा च यज्ञादिश्रुतेरश्ववत् [ॐ]॥ ३/४/२६॥
॥ [ॐ] शमदमाद्युपेतः स्यात् तथाऽपि तु तद्विधेस्तदङ्गतया तेषामवश्यानुष्ठेयत्वात् [ॐ]॥ ३/४/२७॥
॥ [ॐ] सर्वान्नानुमतिश्च प्राणात्यये तद्दर्शनात् [ॐ]॥ ३/४/२८॥
॥ [ॐ] अबाधाच्च [ॐ]॥ ३/४/२९॥
॥ [ॐ] अपि स्मर्यते [ॐ]॥ ३/४/३०॥
॥ [ॐ] शब्दश्चातोऽकामचारे [ॐ]॥ ३/४/३१॥
॥ [ॐ] विहितत्वाच्चाश्रमकर्मापि [ॐ]॥ ३/४/३२॥
॥ [ॐ] सहकारित्वेन च [ॐ]॥ ३/४/३३॥
उभयलिङ्गाधिकरणम्
॥ [ॐ] सर्वथाऽपि तु त एवोभयलिङ्गात् [ॐ]॥ ३/४/३४॥
॥ [ॐ] अनभिभवं च दर्शयति [ॐ]॥ ३/४/३५॥
॥ [ॐ] अन्तरा चापि तु तद्दृष्टेः [ॐ]॥ ३/४/३६॥
॥ [ॐ] अपि स्मर्यते [ॐ]॥ ३/४/३७॥
॥ [ॐ] विशेषानुग्रहं च [ॐ]॥ ३/४/३८॥
॥ [ॐ] अतस्त्वितरज्ज्यायो लिङ्गाच्च [ॐ]॥ ३/४/३९॥
॥ [ॐ] तद्भूतस्य तु तद्भावो जैमिनेरपि नियमातद्रूपाभावेभ्यः [ॐ]॥ ३/४/४०॥
अधिकारिकाधिकरणम्
॥ [ॐ] नचाधिकारिकमपि पतनानुमानात् तदयोगात् [ॐ]॥ ३/४/४१॥
॥ [ॐ] उपपूर्वमपीत्येके भावशमनवत् तदुक्तम् [ॐ]॥ ३/४/४२॥
॥ [ॐ] बहिस्तूभयथाऽपि स्मृतेराचाराच्च [ॐ]॥ ३/४/४३॥
फलश्रुत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] स्वामिनः फलश्रुतेरित्यात्रेयः [ॐ]॥ ३/४/४४॥
॥ [ॐ] आर्त्विज्यमित्यौडुलोमिस्तस्मै हि परिक्रियते [ॐ]॥ ३/४/४५॥
॥ [ॐ] सहकार्यन्तरविधिः पक्षेण तृतीयं तद्वतो विध्यादिवत् [ॐ]॥ ३/४/४६॥
कृत्स्नभावाधिकरणम्
॥ [ॐ] कृत्स्नभावात् तु गृहिणोपसंहारः [ॐ]॥ ३/४/४७॥
॥ [ॐ] मौनवदितरेषामप्युपदेशात् [ॐ]॥ ३/४/४८॥
अनाविष्काराधिकरणम्
॥ [ॐ] अनाविष्कुर्वन्नन्वयात् [ॐ]॥ ३/४/४९॥
ऐहिकाधिकरणम्
॥ [ॐ] ऐहिकमप्रस्तुतप्रतिबन्धे तद्दर्शनात् [ॐ]॥ ३/४/५०॥
मुक्तिफलाधिकरणम्
॥ [ॐ] एवं मुक्तिफलानियमस्तदवस्थावधृतेस्तदवस्थावधृतेः [ॐ]॥ ३/४/५१॥
फलाध्यायः
कर्मक्षयपादः
आवृत्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] आवृत्तिरसकृदुपदेशात् [ॐ]॥ ४/१/१॥
॥ [ॐ] लिङ्गाच्च [ॐ]॥ ४/१/२॥
आत्मोपगमाधिकरणम्
॥ [ॐ] आत्मेति तूपगच्छन्ति ग्राहयन्ति च [ॐ]॥ ४/१/३॥
नप्रतीकाधिकरणम्
॥ [ॐ] न प्रतीके नहि सः [ॐ]॥ ४/१/४॥
ब्रह्मदृष्ट्यधिकरणम्
॥ [ॐ] ब्रह्मदृष्टिरुत्कर्षात् [ॐ]॥ ४/१/५॥
आदित्यादिमत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] आदित्यादिमतयश्चाङ्ग उपपत्तेः [ॐ]॥ ४/१/६॥
आसनाधिकरणम्
॥ [ॐ] आसीनः सम्भवात् [ॐ]॥ ४/१/७॥
॥ [ॐ] ध्यानाच्च [ॐ]॥ ४/१/८॥
॥ [ॐ] अचलत्वं चापेक्ष्य [ॐ]॥ ४/१/९॥
॥ [ॐ] स्मरन्ति च [ॐ]॥ ४/१/१०॥
॥ [ॐ] यत्रैकाग्रता तत्राविशेषात् [ॐ]॥ ४/१/११॥
प्रायणाधिकरणम् (आप्रायणाधिकरणम्)
॥ [ॐ] आ प्रायणात् तत्रापि हि दृष्टम् [ॐ]॥ ४/१/१२॥
तदधिगमाधिकरणम्
॥ [ॐ] तदधिगम उत्तरपूर्वाघयोरश्लेषविनाशौ तद्व्यपदेशात् [ॐ]॥ ४/१/१३॥
॥ [ॐ] इतरस्याप्येवमसंश्लेषः पाते तु [ॐ]॥ ४/१/१४॥
॥ [ॐ] अनारब्धकार्ये एव तु पूर्वे तदवधेः [ॐ]॥ ४/१/१५॥
॥ [ॐ] अग्निहोत्रादि तु तत्कार्यायैव तद्दर्शनात् [ॐ]॥ ४/१/१६॥
॥ [ॐ] अतोऽन्यदपीत्येकेषामुभयोः [ॐ]॥ ४/१/१७॥
॥ [ॐ] यदेव विद्ययेति हि [ॐ]॥ ४/१/१८॥
॥ [ॐ] भोगेन त्वितरे क्षपयित्वाऽथ सम्पत्स्यते [ॐ]॥ ४/१/१९॥
उत्क्रान्तिपादः
॥ [ॐ] वाङ्मनसि दर्शनाच्छब्दाच्च [ॐ]॥ ४/२/१॥
वाङ्मनसाधिकरणम्
॥ [ॐ] अत एव च सर्वाण्यनु [ॐ]॥ ४/२/२॥
मनोऽधिकरणम् (मनःप्राणाधिकरणम्)
॥ [ॐ] तन्मनः प्राण उत्तरात् [ॐ]॥ ४/२/३॥
अध्यक्षाधिकरणम्
॥ [ॐ] सोऽध्यक्षे तदुपगमादिभ्यः [ॐ]॥ ४/२/४॥
भूताधिकरणम्
॥ [ॐ] भूतेषु तच्छ्रुतेः [ॐ]॥ ४/२/५॥
अनेकलयाधिकरणम् (नैकस्मिन्नधिकरणम्)
॥ [ॐ] नैकस्मिन् दर्शयतो हि [ॐ]॥ ४/२/६॥
समनाधिकरणम्
॥ [ॐ] समना चासृत्युपक्रमादमृतत्वं चानुपोष्य [ॐ]॥ ४/२/७॥
॥ [ॐ] तदापीतेः संसारव्यपदेशात् [ॐ]॥ ४/२/८॥
॥ [ॐ] सूक्ष्मं प्रमाणतश्च तथोपलब्धेः [ॐ]॥ ४/२/९॥
॥ [ॐ] नोपमर्देनातः [ॐ]॥ ४/२/१०॥
॥ [ॐ] अस्यैव चोपपत्तेरूष्मा [ॐ]॥ ४/२/११॥
॥ [ॐ] प्रतिषेधादिति चेन्न शारीरात् [ॐ]॥ ४/२/१२॥
॥ [ॐ] स्पष्टो ह्येकेषाम् [ॐ]॥ ४/२/१३॥
॥ [ॐ] स्मर्यते च [ॐ]॥ ४/२/१४॥
पराधिकरणम् (लयाधिकरणम्)
॥ [ॐ] तानि परे तथा ह्याह [ॐ]॥ ४/२/१५॥
अविभागाधिकरणम्
॥ [ॐ] अविभागो वचनात् [ॐ]॥ ४/२/१६॥
हृदयाग्रज्वलनाधिकरणम् (तदोकोऽधिकरणम्)
॥ [ॐ] तदोकोऽग्रज्वलनं तत्प्रकाशितद्वारो विद्यासामर्थ्यात् तच्छेषगत्यनुस्मृतियोगाच्च हार्दानुगृहीतः शताधिकया [ॐ]॥ ४/२/१७॥
॥ [ॐ] रश्म्यनुसारी [ॐ]॥ ४/२/१८॥
॥ [ॐ] निशि नेति चेन्न सम्बन्धात् [ॐ]॥ ४/२/१९॥
॥ [ॐ] यावद्देहभावित्वाद् दर्शयति च [ॐ]॥ ४/२/२०॥
॥ [ॐ] अतश्चायनेऽपि हि दक्षिणे [ॐ]॥ ४/२/२१॥
प्रतिस्मरणाधिकरणम् (योग्यधिकरणम्)
॥ [ॐ] योगिनः प्रति स्मर्येते स्मार्ते चैते [ॐ]॥ ४/२/२२॥
मार्गपादः
॥ [ॐ] अर्चिरादिना तत्प्रथितेः [ॐ]॥ ४/३/१॥
अर्चिराद्याधिकरणम्
वायुगत्यधिकरणम्
॥ [ॐ] वायुशब्दादविशेषविशेषाभ्याम् [ॐ]॥ ४/३/२॥
तटिदधिकरणम्
॥ [ॐ] तटितोऽधि वरुणः सम्बन्धात् [ॐ]॥ ४/३/३॥
आतिवाहिकाधिकरणम्
॥ [ॐ] आतिवाहिकस्तल्लिङ्गात् [ॐ]॥ ४/३/४॥
॥ [ॐ] उभयव्यामोहात् तत्सिद्धेः [ॐ]॥ ४/३/५॥
वैद्युताधिकरणम्
॥ [ॐ] वैद्युतेनैव ततस्तच्छ्रुतेः [ॐ]॥ ४/३/६॥
कार्याधिकरणम्
॥ [ॐ] कार्यं बादरिरस्य गत्युपपत्तेः [ॐ]॥ ४/३/७॥
॥ [ॐ] विशेषितत्वाच्च [ॐ]॥ ४/३/८॥
॥ [ॐ] सामीप्यात् तु तद्व्यपदेशः [ॐ]॥ ४/३/९॥
॥ [ॐ] कार्यात्यये तदध्यक्षेण सहातः परमभिधानात् [ॐ]॥ ४/३/१०॥
॥ [ॐ] स्मृतेश्च [ॐ]॥ ४/३/११॥
॥ [ॐ] परं जैमिनिर्मुख्यत्वात् [ॐ]॥ ४/३/१२॥
॥ [ॐ] दर्शनाच्च [ॐ]॥ ४/३/१३॥
॥ [ॐ] नच कार्ये प्रतिपत्त्यभिसन्धिः [ॐ]॥ ४/३/१४॥
॥ [ॐ] अप्रतीकालम्बनान् नयतीति बादरायण उभयथा च दोषात् तत्क्रतुश्च [ॐ]॥ ४/३/१५॥
॥ [ॐ] विशेषं च दर्शयति [ॐ]॥ ४/३/१६॥
भोगपादः
॥ [ॐ] सम्पद्याविहाय स्वेन शब्दात् [ॐ]॥ ४/४/१॥
सम्पद्याधिकरणम्
मुक्ताधिकरणम्
॥ [ॐ] मुक्तः प्रतिज्ञानात् [ॐ]॥ ४/४/२॥
आत्माधिकरणम्
॥ [ॐ] आत्मा प्रकरणात् [ॐ]॥ ४/४/३॥
अविभागाधिकरणम्
॥ [ॐ] अविभागेन दृष्टत्वात् [ॐ]॥ ४/४/४॥
चितिमात्राधिकरणम् (ब्राह्माधिकरणम्)
॥ [ॐ] ब्राह्मेण जैमिनिरुपन्यासादिभ्यः [ॐ]॥ ४/४/५॥
॥ [ॐ] चितिमात्रेण तदात्मकत्वादित्यौडुलोमिः [ॐ]॥ ४/४/६॥
॥ [ॐ] एवमप्युपन्यासात् पूर्वभावादविरोधं बादरायणः [ॐ]॥ ४/४/७॥
सङ्कल्पाधिकरणम्
॥ [ॐ] सङ्कल्पादेव च तच्छ्रुतेः [ॐ]॥ ४/४/८॥
अनन्याधिपतित्वाधिकरणम्
॥ [ॐ] अत एव चानन्याधिपतिः [ॐ]॥ ४/४/९॥
उभयविधभोगाधिकरणम् (अभावाधिकरणम्)
॥ [ॐ] अभावं बादरिराह ह्येवम् [ॐ]॥ ४/४/१०॥
॥ [ॐ] भावं जैमिनिर्विकल्पाम्नानात् [ॐ]॥ ४/४/११॥
॥ [ॐ] द्वादशाहवदुभयविधं बादरायणोऽतः [ॐ]॥ ४/४/१२॥
॥ [ॐ] तन्वभावे सन्ध्यवदुपपत्तेः [ॐ]॥ ४/४/१३॥
॥ [ॐ] भावे जाग्रद्वत् [ॐ]॥ ४/४/१४॥
॥ [ॐ] प्रदीपवदावेशस्तथा हि दर्शयति [ॐ]॥ ४/४/१५॥
॥ [ॐ] स्वाप्ययसम्पत्त्योरन्यतरापेक्षमाविष्कृतं हि [ॐ]॥ ४/४/१६॥
सर्वकामाधिकरणम् (जगद्व्यापाराधिकरणम्)
॥ [ॐ] जगद्व्यापारवर्जम् [ॐ]॥ ४/४/१७॥
॥ [ॐ] प्रकरणादसन्निहितत्वाच्च [ॐ]॥ ४/४/१८॥
॥ [ॐ] प्रत्यक्षोपदेशादिति चेन्नाधिकारिकमण्डलस्थोक्तेः [ॐ]॥ ४/४/१९॥
॥ [ॐ] विकारावर्ति च तथाहि दर्शयति [ॐ]॥ ४/४/२०॥
स्थित्यधिकरणम्
॥ [ॐ] स्थितिमाह दर्शयतश्चैवं प्रत्यक्षानुमाने [ॐ]॥ ४/४/२१॥
॥ [ॐ] भोगमात्रसाम्यलिङ्गाच्च [ॐ]॥ ४/४/२२॥
अनावृत्त्यधिकरणम्
॥ [ॐ] अनावृत्तिः शब्दादनावृत्तिः शब्दात् [ॐ]॥ ४/४/२३॥